जलवायु परिवर्तन एक टाइम बम है, अस्तित्व का संकट है, मानवता खतरे में है-उपराष्ट्रपति
जलवायु परिवर्तन एक टाइम बम है, अस्तित्व का संकट है, मानवता खतरे में है-उपराष्ट्रपति
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उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज सचेत किया कि जलवायु परिवर्तन एक टाइम बम है और यह मानव जाति के लिए अस्तित्व का संकट है। उन्होंने ने चेतावनी दी कि “मानवता संकट में है।” उपराष्ट्रपति ने कहा, “हमारा ग्रह, जो कभी एक हरा-भरा स्वर्ग था, अब अपने अतीत की छाया नहीं रहा। जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और वनों की कटाई के कारण, ग्रह विनाश के कगार पर पहुंच गया है।”
जलवायु परिवर्तन एक टाइम बम है, अस्तित्व का संकट है, मानवता खतरे में है-उपराष्ट्रपति। कोई आकस्मिक योजना बी नहीं है, हमारे पास केवल एक ग्रह है– उपराष्ट्रपति। “एक पेड़ मां के नाम” केवल एक भावनात्मक अपील नहीं है, यह एक क्रांतिकारी कदम है- उपराष्ट्रपति। जलवायु न्याय हमारा लक्ष्य होना चाहिए क्योंकि, जलवायु परिवर्तन सबसे अधिक हाशिए पर स्थित लोगों को प्रभावित करता है- उपराष्ट्रपति। उपराष्ट्रपति ने रेखांकित किया- प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व भारत के सभ्यतागत लोकाचार का आंतरिक पहलू रहा है। उपराष्ट्रपति ने वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (जीबीए) और टिकाऊ ऊर्जा में भारत के वैश्विक नेतृत्व की सराहना की। उपराष्ट्रपति ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सभी हितधारकों से सामूहिक कार्रवाई का आह्वान किया। उपराष्ट्रपति ने जैव ऊर्जा पर आयोजित चौथे अंतरराष्ट्रीय जलवायु शिखर सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित किया।
उपराष्ट्रपति ने आज नई दिल्ली में “जैव ऊर्जा: विकसित भारत का मार्ग” विषयवस्तु पर आयोजित चौथे अंतरराष्ट्रीय जलवायु शिखर सम्मेलन के समापन सत्र में मुख्य भाषण दिया। श्री धनखड़ ने कहा, “कोई आकस्मिक योजना नहीं है, पृथ्वी के अलावा कोई अन्य ग्रह नहीं है और इसे संरक्षित और पोषित करने की आवश्यकता है।”
उपराष्ट्रपति ने जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों जैसे कि लंबे समय तक सूखे की स्थिति, जंगलों में आग की घटनाओं का बढ़ना और विनाशकारी तूफानों को रेखांकित किया। श्री धनखड़ ने इस बात पर जोर दिया कि “ये परिवर्तन न केवल कमजोर आबादी बल्कि, जैव विविधता और खाद्य सुरक्षा को भी खतरे में डालते हैं, जिससे हमारे प्राकृतिक संसाधनों व कृषि प्रणालियों पर भारी दबाव पड़ता है”, इस तरह सामुदायिक गिरावट में इसका योगदान होता है।
उपराष्ट्रपति ने हमारे सदियों पुराने मूल्यों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि “प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व और इकोलॉजी को लेकर गहरा सम्मान, भारत के सभ्यतागत लोकाचार का एक आंतरिक पहलू रहा है।”
श्री धनखड़ ने जलवायु न्याय पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जलवायु न्याय हमारा लक्ष्य होना चाहिए, क्योंकि जलवायु परिवर्तन हाशिए पर स्थित और कमजोर समुदायों को काफी अधिक प्रभावित करता है।
श्री धनखड़ ने भारत की ओर से वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन, हरित हाइड्रोजन मिशन और अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसे उठाए गए अग्रणी कदमों की प्रशंसा की। साथ ही उन्होंने टिकाऊ ऊर्जा में भारत की निभाई गई नेतृत्वकारी भूमिका की सराहना की। उन्होंने जैव ऊर्जा के लाभों का उल्लेख किया। उपराष्ट्रपति ने कहा, “आधुनिक जैव ऊर्जा न केवल स्वच्छ ईंधन प्रदान करती है, बल्कि प्रदूषण को कम करने, किसानों की आय बढ़ाने, आयात बिलों को कम करने और स्थानीय नौकरियां उत्पन्न करने में भी सहायता करती है।”
उपराष्ट्रपति ने इस बात को रेखांकित किया कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सीमाओं के पार तक पहुंच रहा है। उन्होंने सरकारों, कॉरपोरेट नेताओं और लोगों सहित सभी हितधारकों से इस खतरे से निपटने के लिए सामूहिक कार्रवाई करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “जब हिसाब-किताब का दिन आएगा, तो कोई भी नहीं बचेगा, इसलिए हमें एकजुट होकर आगे बढ़ना होगा, जितना हो सके, अपनी ऊर्जा को अधिकतम तक पहुंचाना होगा, अपनी क्षमता का उपयोग करना होगा, अपना सबकुछ देना होगा।”
उपराष्ट्रपति ने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान की क्रांतिकारी क्षमता का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि यह केवल एक भावनात्मक अपील या नारा नहीं है, बल्कि यह एक क्रांतिकारी कदम है। इस कदम से यह सुनिश्चित होगा कि हर साल 140 करोड़ लोग पेड़ लगाएंगे। इसका बहुत सकारात्मक, व्यापक प्रभाव होगा। इससे हमें अस्तित्वगत समस्या से निपटने में सहायता मिलेगी, एक ऐसी समस्या जो हमारी ही बनाई हुई है- प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और वनों की कटाई।”
इस अवसर पर पीएचडीसीसीआई (पीएचडी चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री) के अध्यक्ष श्री संजीव अग्रवाल, पीएचडीसीसीआई के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री हेमंत जैन, पीएचडीसीसीआई के पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के डॉ. अध्यक्ष जे.पी. गुप्ता, पीएचडीसीसीआई के कार्यकारी निदेशक डॉ. रणजीत मेहता और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।