गणेश चतुर्थी: जाने शुभ मुहूर्त पूजन सामग्री एवं कथा
गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है जो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन गणेश जी का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन को गणेश जयंती के नाम से भी जाना जाता है। गणेश जी को विघ्नहर्ता के रूप में पूजा जाता है और माना जाता है कि वे सभी शुभ कार्यों की शुरुआत में पूजनीय हैं।
यह भी पढ़े आज का राशिफल
BREAKING NEWS: आज का राशिफलhttps://t.co/29Zg54qYNn
— GoyalExpress🇮🇳 (@ExpressGoyal) September 4, 2024
गणेश चतुर्थी का महत्व
गणेश चतुर्थी का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है। इस दिन लोग अपने घरों में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते हैं और दस दिनों तक उनकी पूजा करते हैं। दसवें दिन गणेश जी की विसर्जन की रस्म निभाई जाती है। गणेश चतुर्थी को मनाने के पीछे कई कारण हैं:
- विघ्नहर्ता की आराधना: गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है। माना जाता है कि वे सभी शुभ कार्यों में आने वाली बाधाओं को दूर करते हैं। इसलिए, लोग अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए गणेश जी की पूजा करते हैं।
- बुद्धि और विवेक का प्रतीक: गणेश जी को बुद्धि और विवेक का प्रतीक माना जाता है। इसलिए, छात्र गणेश जी की पूजा करके अपनी पढ़ाई में सफलता प्राप्त करने की कामना करते हैं।
- नए शुरुआत का प्रतीक: गणेश जी को नई शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। इसलिए, लोग नए काम की शुरुआत करने से पहले गणेश जी की पूजा करते हैं।
- समाजिक एकता: गणेश चतुर्थी के त्योहार में सभी लोग मिलकर गणेश जी की पूजा करते हैं। इससे समाज में एकता और भाईचारा बढ़ता है।
गणेश आरती
गणेश चतुर्थी का उत्सव
गणेश चतुर्थी का उत्सव पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस उत्सव में लोग गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते हैं, उनकी पूजा करते हैं, आरती करते हैं और भजन गाते हैं। इस दौरान लोग एक-दूसरे के घरों में जाकर मिठाई खाते हैं और गप्पे लगाते हैं। गणेश चतुर्थी के दौरान कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
गणेश चतुर्थी का महत्व
गणेश चतुर्थी का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक भी है। यह त्योहार लोगों को एकजुट करता है और समाज में सद्भावना का वातावरण बनाता है। गणेश चतुर्थी के माध्यम से लोग धार्मिक शिक्षा प्राप्त करते हैं और अच्छे संस्कारों का पालन करते हैं।
इस महीने 7 सितम्बर शनिवार से गणेश चतुर्थी का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, यह पर्व हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से 10 दिनों तक गणेश उत्सव मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गणेशजी के जन्मोत्सव को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश के विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है। 10 दिनों तक भगवान गणेश को घर में रखकर उत्सव मनाया जाता है और भक्त बप्पा की खूब सेवा भी कर सकते हैं। गणेश चतुर्थी का पर्व आने में अब कुछ ही दिन बचे हैं, ऐसे में अभी से पूजा में काम आने वाली सामग्री लिस्ट के बारे में जान लीजिए, ताकि पूजा के दौरान कोई भी चीज रह ना जाए।
गणेश चतुर्थी 7 सितंबर
चतुर्थी तिथि का आरंभ – 6 सितंबर, दोपहर 3 बजकर 1 मिनट से आरंभ
चतुर्थी तिथि का समापन – 7 सितंबर, शाम 5 बजकर 36 मिनट पर समापन
उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए 7 सितंबर दिन शनिवार को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाएगा।
गणेश पूजन स्थापना मुहूर्त
गणेशजी की पूजा दोपहर के समय की जाती है क्योंकि मान्यता है कि दोपहर के समय ही गणेशजी का प्राकट्य हुआ था। 7 सितंबर को आप गणेशजी की स्थापना दोपहर 11 बजकर 3 से 1 बजकर 34 मिनट तक कर सकते हैं।
गणेश चतुर्थी पूजन सामग्री
- भगवान गणेश के पूजन के लिए गणेशजी की प्रतिमा, फिर वह चाहें मिट्टी, स्वर्ण, चांदी, पीतल आदि की ही क्यों ना हो, अपने सामग्री में जोड़ लें।
- हल्दी, कुमकुम, सुपारी, सिंदूर, गुलाल, लौंग, लाल रंग का वस्त्र, जनेऊ का जोड़ा, दूर्वा, कपूर, दीप, धूप, पंचामृत, मौली, फल, पंचमेवा, गंगाजल, कलश, फल, नारियल, लाल चंदन, मोदक हैं।
- अष्टगंध, दही, शहद, गाय का घी, शक्कर, गणेशजी के लिए फूल की माला, केले के पत्ते, गुलाब जल, दीपक बाती, चांदी का सिक्का।
गणेश पूजन में भगवान गणेश के 21 नाम का जप करना बहुत फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि हर रोज इन 21 नाम का जप करने से जीवन के सभी दुख व कष्ट दूर हो जाते हैं।
गणेश जी की पूजा विधि
गणेश चतुर्थी की पूजा विधि बहुत ही सरल और प्रभावी है। सबसे पहले भगवान गणेश की मूर्ति के सामने दीपक जलाएं और उन्हें पुष्प और फल अर्पित करें। इसके बाद गणेश मंत्रों का उच्चारण करें और गणेश चालीसा का पाठ करें। पूजा के अंत में गणेश जी की आरती करें और प्रसाद का वितरण करें। गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें मोडक, लड्डू और दूर्वा घास अर्पित करना चाहिए।
गणेश चतुर्थी की कथा
शिवपुराण के अन्तर्गत रुद्रसंहिताके चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वार पाल बना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणोंने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया।
शिवजी के निर्देश पर विष्णुजीउत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गज मुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्यहोने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्ष पर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
दूसरी कथा
उत्सव में एक गणेश प्रतिमा विसर्जन के लिए ले जाते हुए।
एक बार महादेवजी, पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए। वहाँ एक सुंदर स्थान पर पार्वती जी ने महादेवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की। तब शिवजी ने कहा- हमारी हार-जीत का साक्षी कौन होगा? पार्वती ने तत्काल वहाँ की घास के तिनके बटोरकर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करके उससे कहा- बेटा ! हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, किन्तु यहाँ हार-जीत का साक्षी कोई नहीं है। अतः खेल के अन्त में तुम हमारी हार-जीत के साक्षी होकर बताना कि हममें से जीता, कौन हारा?
खेल आरंभ हुआ। दैवयोग से तीनों बार पार्वती जी ही जीतीं। जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय कराया गया तो उसने महादेवजी को विजयी बताया। परिणामतः पार्वती जी ने क्रुद्ध होकर उसे एक पाँव से लंगड़ा होने और वहाँ के कीचड़ में पड़ा रहकर दुःख भोगने का श्राप दे दिया। बालक ने विनम्रतापूर्वक कहा- माँ! मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है। मैंने किसी कुटिलता या द्वेष के कारण ऐसा नहीं किया। मुझे क्षमा करें तथा शाप से मुक्ति का उपाय बताएँ। तब ममतारूपी माँ को उस पर दया आ गई और वे बोलीं- यहाँ नाग-कन्याएँ गणेश-पूजन करने आएँगी। उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे। इतना कहकर वे कैलाश पर्वत चली गईं।
एक वर्ष बाद वहाँ श्रावण में नाग-कन्याएँ गणेश पूजन के लिए आईं। नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताई। तत्पश्चात बालक ने 12 दिन तक श्रीगणेशजी का व्रत किया। तब गणेशजी ने उसे दर्शन देकर कहा- मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूँ। मनोवांछित वर माँगो। बालक बोला- भगवन! मेरे पाँव में इतनी शक्ति दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास पहुँच सकूं और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएँ। गणेशजी ‘तथास्तु’ कहकर अंतर्धान हो गए। बालक भगवान शिव के चरणों में पहुँच गया। शिवजी ने उससे वहाँ तक पहुँचने के साधन के बारे में पूछा। तब बालक ने सारी कथा शिवजी को सुना दी। उधर उसी दिन से अप्रसन्न होकर पार्वती शिवजी से भी विमुख हो गई थीं। तदुपरांत भगवान शंकर ने भी बालक की तरह २१ दिन पर्यन्त श्रीगणेश का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई।
वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुँची। वहाँ पहुँचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा- भगवन! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूँ। शिवजी ने ‘गणेश व्रत’ का इतिहास उनसे कह दिया। तब पार्वतीजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यन्त 21-21 की संख्या में दूर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया। 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वतीजी से आ मिले। उन्होंने भी माँ के मुख से इस व्रत का माहात्म्य सुनकर व्रत किया। कार्तिकेय ने यही व्रत विश्वामित्रजी को बताया। विश्वामित्रजी ने व्रत करके गणेशजी से जन्म से मुक्त होकर ‘ब्रह्म-ऋषि’ होने का वर माँगा। गणेशजी ने उनकी मनोकामना पूर्ण की। ऐसे हैं श्री गणेशजी, जो सबकी कामनाएँ पूर्ण करते हैं।
तीसरी कथा
एक बार महादेवजी स्नान करने के लिए भोगावती गए। उनके जाने के पश्चात पार्वती ने अपने तन के मैल से एक पुतला बनाया और उसका नाम ‘गणेश’ रखा। पार्वती ने उससे कहा- हे पुत्र! तुम एक मुगदल लेकर द्वार पर बैठ जाओ। मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ। जब तक मैं स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर मत आने देना।
भोगावती में स्नान करने के बाद जब भगवान शिवजी आए तो गणेश जी ने उन्हें द्वार पर रोक लिया। इसे शिवजी ने अपना अपमान समझा और क्रोधित होकर उनका सिर धड़ से अलग करके भीतर चले गए। पार्वती ने उन्हें नाराज देखकर समझा कि भोजन में विलंब होने के कारण महादेवजी नाराज हैं। इसलिए उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोसकर शिवजी को बुलाया। तब दूसरा थाल देखकर तनिक आश्चर्यचकित होकर शिवजी ने पूछा- यह दूसरा थाल किसके लिए हैं? पार्वती जी बोलीं- पुत्र गणेश के लिए हैं, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है।
यह सुनकर शिवजी और अधिक आश्चर्यचकित हुए। तुम्हारा पुत्र पहरा दे रहा है? हाँ नाथ! क्या आपने उसे देखा नहीं? देखा तो था, किन्तु मैंने तो अपने रोके जाने पर उसे कोई उद्दण्ड बालक समझकर उसका सिर काट दिया। यह सुनकर पार्वती जी बहुत दुःखी हुईं। वे विलाप करने लगीं। तब पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया। पार्वती जी इस प्रकार पुत्र गणेश को पाकर बहुत प्रसन्न हुई। उन्होंने पति तथा पुत्र को प्रीतिपूर्वक भोजन कराकर बाद में स्वयं भोजन किया। यह घटना भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुई थी। इसीलिए यह तिथि पुण्य पर्व के रूप में मनाई जाती है।
भगवान गणेश के 21 नाम
ॐ गणञ्जयाय नमः
ॐ गं गणपतये नमः
ॐ गं हेरम्बाय नमः
ॐ गं धरणीधराय नमः
ॐ गं महागणपतये नमः
ॐ गं लक्षप्रदाय नमः
ॐ गं क्षिप्रप्रसादनाय नमः
ॐ गं अमोघसिद्धये नमः
ॐ गं अमृताय नमः
ॐ गं मंत्राय नमः
ॐ गं चिंतामणये नमः
ॐ गं निधये नमः
ॐ गं सुमङ्गलाय नमः
ॐ गं बीजाय नमः
ॐ गं आशापूरकाय नमः
ॐ गं वरदाय नमः
ॐ गं शिवाय नमः
ॐ गं काश्यपाय नमः
ॐ गं नन्दनाय नमः
ॐ गं वाचासिद्धाय नमः
ॐ गं ढुण्ढिविनायकाय नमः