बजट पर एक समाजशास्त्री समाजसेवी की प्रतिक्रिया
बजट पर एक समाजशास्त्री समाजसेवी की प्रतिक्रिया
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देश के वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत बजट में कोर सामाजिक क्षेत्र की अनदेखी होती दिख रही है । ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार का ध्यान ही इस ओर नहीं गया है । इस संबंध में दो बातें कहना चाहूंगा –
पहली सरकार द्वारा युवाओं के लिए इंटर्नशिप की योजना शुरू की गई अच्छी बात है । लेकिन इस योजना के लिए दिया जाने वाला पेमेंट कंपनियों के सीएसआर फंड से दिया जाएगा जो सरासर गलत है। क्योंकि इसी सीएसआर फंड से समाज में कई तरह के विकास कार्य समुदाय के अति गरीब परिवारों के लिए सीधे-सीधे लागू किए जाते हैं। उसका मूल उद्देश्य ही वही है। लेकिन फंड डाइवर्जन से इन गरीबों के विकास से संबंधित कार्यक्रमों से सीधे-सीधे इनको वंचित करना होगा। युवाओं के इस स्टाइपेंड की व्यवस्था के लिए सरकार को अलग से फंड की व्यवस्था करनी चाहिए। तभी सभी के साथ न्याय हो सकेगा।
दूसरे अधिकतर कंपनियों ने सीएसआर फंड को सामाजिक सेवा पर खर्च करने के लिए और उसे कानून सम्मत दर्शाने के लिए खुद का फाउंडेशन और ट्रस्ट बना लिया है, जो सरासर गलत है। उनके द्वारा बनाए गए खुद के इंटरेस्ट में करोड़ों का सीएसआर फंड अपने ही ट्रस्ट / सोसाइटी/ फाउंडेशन में ट्रांसफर किया जा रहा है जो कि समाज सेवा क्षेत्र में सीधे-सीधे खर्च किया जाना कानूनी जरूरी है । लेकिन वास्तव में क्या वह हो रहा है? या सिर्फ कागजों पर खर्च हो जा रहा। ये तो अपने ही फंड को अपने ही पास रख लेना और फिर अपने से ही समाज के लिए खर्च करना हुआ! लेकिन सच्चाई क्या है? इस तरह से तो काले धन को संचित करने की प्रवृत्ति बढ़ेगी। सरकार को चाहिए कि किसी भी कंपनी को अपने सीएसआर फंड का खर्चा स्वयं के फाउंडेशन या ट्रस्ट या सोसाइटी के जरिए करने पर रोक लगाए। इससे न सिर्फ आर्थिक पारदर्शिता बढ़ेगी बल्कि सीएसआर फंड वास्तविक जरूरतमंदों तक वास्तव में पहुंच पाएगा जो कि इसका मूल मंतव्य होता है।