चौरीचौरा थाने के दरोगा ने फर्जी बैनामे को सही दिखने के लिए की हेरा फेरी, एसएसपी ने दरोगा को निलंबित कर विभागीय जांच का दिया निर्देश, पीड़िता पहुंची हाईकोर्ट
चौरीचौरा थाने के दरोगा ने फर्जी बैनामे को सही दिखने के लिए की हेरा फेरी, एसएसपी ने दरोगा को निलंबित कर विभागीय जांच का दिया निर्देश, पीड़िता पहुंची हाईकोर्ट
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चौरीचौरा थाने में तैनात दरोगा ने जालसाजी के केस में पीड़ित के साथ ही ‘ठगी’ कर दी. फर्जी तरीके से बैनामा कराई गई जमीन को सही दर्शाने के लिए फॉरेंसिक रिपोर्ट में खेल कर दिया गया. इसकी भनक लगने के बाद पीड़िता बेचना देवी हाईकोर्ट चली गईं. अब कोर्ट ने पूरे प्रकरण का संज्ञान लेते हुए एसएसपी से व्यक्तिगत रूप से शपथ पत्र मांगा है.इधर, एसएसपी ने पीड़ित के साथ ठगी करने वाले दरोगा को निलंबित कर विभागीय जांच का निर्देश दे दिया है. खबर है कि थानेदार की भूमिका की भी जांच की जा रही है.
दरअसल, पीड़िता चौरीचौरा इलाके के केशवपट्टी निवासी बेचनी देवी ने 13 फरवरी 2024 को चौरीचौरा थाने में (क्राइम नंबर 0060) केस दर्ज कराया. पुलिस को बताया कि उसकी मां कलावती देवी के नाम से चकदेईया में जमीन थी. उस जमीन को मां ने कभी बेचा नहीं. दो साल पहले मां की मौत हो चुकी है. मां की मौत के बाद वारिस के तौर पर 12 2021 को नाम भी दर्ज हो गया, लेकिन कुछ दिन बाद खतौनी निकालने पर पता चला कि मां की फोटो लगाकर कूटरचित दस्तावेज तैयार करके कुशनीगर जिले के हाटा निवासी शिवकुमार, राजकुमार, विश्वनाथ, दुर्गेश व चकदेईया के श्याम मिलन ने जमीन अपने नाम करा ली है.
बैनामे की नकल निकवाले पर पता चला कि मां की फोटो थी, लेकिन मां ने जमीन किसी को बेची नहीं थी. जमीन को 24 जनवरी 2001 को बैनामा कराया गया था और मां की मौत के बाद 21 जनवरी 2022 को आरोपियों ने अपना नाम चढ़वा लिया. बेचनी ने पुलिस को बताया कि सोच समझकर फर्जी बैनामा पर नामांतरण तब कराया गया, जब मां की मौत हो गई.
आरोपी गया जेल, फिर ऐसे किया गया खेल केस दर्ज होने के बाद इस प्रकरण की विवेचना चौरीचौरा थाने में तैनात दरोगा रामचंद्र को सौंपी गई. जांच के आधार पर दरोगा ने आरोपी राजकुमार को जेल भेज दिया. लेकिन, इसके बाद तत्कालीन सीओ चौरीचौरा ने केस की विवेचना सुनील त्रिपाठी को सौंप दी. सुनील ने बैनामा सही है या नहीं, इसकी जांच के लिए तहसील से रजिस्टर आठ और बैनामे की नकल लेकर फॉरेंसिक लैब को भेज दिया. सही वसीयत से फर्जी बैनामे की जांच न कराकर, फर्जी बैनामे से फर्जी तरीके से तैयार पेपर की जांच करा दी गई और उसी रिपोर्ट के आधार पर केस को खत्म करने की तैयारी कर ली गई.