Monday, February 24, 2025

प्रयागराज: महाकुंभ में इतिहास रचने की तैयारी, दो दिन में बनेंगे तीन विश्व रिकॉर्ड

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प्रयागराज: महाकुंभ में इतिहास रचने की तैयारी, दो दिन में बनेंगे तीन विश्व रिकॉर्ड

प्रयागराज: महाकुंभ में इतिहास रचने की तैयारी, दो दिन में बनेंगे तीन विश्व रिकॉर्ड
प्रयागराज: महाकुंभ में इतिहास रचने की तैयारी, दो दिन में बनेंगे तीन विश्व रिकॉर्ड

प्रयागराज: महाकुंभ में इतिहास रचने की तैयारी, दो दिन में बनेंगे तीन विश्व रिकॉर्ड

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प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान सोमवार और मंगलवार को तीन नए विश्व रिकॉर्ड बनाए जाएंगे। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड सहित अन्य तकनीकी संस्थानों के विशेषज्ञों की मौजूदगी में ये कीर्तिमान स्थापित किए जाएंगे। मेला प्रशासन पहले ही चार विश्व रिकॉर्ड बनाने की योजना बना चुका था, जिनमें से नदी स्वच्छता का एक रिकॉर्ड 14 फरवरी को बन चुका है। तीन नए विश्व रिकॉर्ड इस तरह होंगे: सोमवार, 24 फरवरी :15,000 सफाई कर्मचारी एक साथ झाड़ू लगाकर स्वच्छता का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाएंगे। यह रिकॉर्ड अरैल हेलीपैड मार्ग, परेड क्षेत्र, और झूंसी अखाड़ा मार्ग पर बनाया जाएगा। इससे पहले कुंभ-2019 में 10,000 सफाईकर्मियों के साथ यह रिकॉर्ड बनाया गया था। मंगलवार, 25 फरवरी : 10,000 लोगों के हैंड प्रिंट लेकर एक नया कीर्तिमान बनाया जाएगा। इसके लिए गंगा पंडाल और अन्य प्रमुख स्थलों पर कैनवास रखे जाएंगे। कुंभ-2019 में 7,500 लोगों के हैंड प्रिंट लेने का रिकॉर्ड बना था। शटल बस संचालन का नया रिकॉर्ड: एक साथ 550 से अधिक शटल बसों के संचालन का विश्व रिकॉर्ड बनाया जाएगा। यह जिम्मेदारी परिवहन विभाग को दी गई है। कुंभ-2019 में 500 बसों के संचालन का रिकॉर्ड बनाया गया था। महाकुंभ में रिकॉर्ड बनाने की इन कोशिशों के दौरान गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड और अन्य तकनीकी संस्थानों के विशेषज्ञ मौजूद रहेंगे। मेला प्रशासन के अनुसार, भीड़ को देखते हुए यह योजना आगे बढ़ाई गई है। मेलाधिकारी विजय किरन आनंद ने बताया कि सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं और महाकुंभ में एक बार फिर इतिहास रचा जाएगा।

महाकुंभ, हिन्दू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, जो हर 12 वर्षों में चार प्रमुख स्थानों पर आयोजित होता है:   प्रयागराज (इलाहाबाद),     हरिद्वार,     उज्जैन   और   नासिक  । यह पर्व विशेष रूप से गंगा, यमुना, गोमती, क्षिप्रा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए प्रसिद्ध है, जिससे व्यक्ति को पुण्य और पापों से मुक्ति की प्राप्ति होती है। इसे “कुंभ मेला” के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन जब यह आयोजन एक विशेष अंतराल के बाद (12 वर्षों में एक बार) आयोजित होता है, तब उसे “महाकुंभ” कहा जाता है।

  महाकुंभ का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व

महाकुंभ का ऐतिहासिक महत्व बहुत पुराना है। यह आयोजन प्राचीन काल से अस्तित्व में है, और इसके आयोजन का मुख्य उद्देश्य है भक्तों को पवित्र नदियों में स्नान करने का अवसर देना ताकि वे अपने पापों से मुक्त हो सकें और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सके। कुंभ मेला विशेष रूप से उस समय आयोजित किया जाता है जब एक विशेष ज्योतिषीय संयोग बनता है, जब गुरु (बृहस्पति) एक राशि में और सूर्य तथा चंद्रमा अन्य विशेष स्थितियों में होते हैं।

महाकुंभ की मान्यता के अनुसार,   देवताओं और दानवों   के बीच समुद्र मंथन से अमृत का कलश प्राप्त हुआ था। इस अमृत के कलश के चार बूँदें अलग-अलग स्थानों पर गिरीं, और इन्हीं स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। यही कारण है कि इन स्थानों को पवित्र माना जाता है और यहाँ पर स्नान करने से आत्मा को शुद्धि मिलती है।

  महाकुंभ के चार प्रमुख स्थान

महाकुंभ का आयोजन चार स्थानों पर होता है, जो प्रत्येक स्थान का अपनी धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता है:

  1. प्रयागराज (इलाहाबाद) : यह स्थान संगम के नाम से प्रसिद्ध है, जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती नदियाँ मिलती हैं। प्रयागराज में कुंभ मेला सबसे बड़ा होता है।
  1. हरिद्वार : यहाँ गंगा नदी के तट पर स्नान करना पुण्य माना जाता है। हरिद्वार में कुंभ मेला विशेष रूप से “गंगा स्नान” के लिए प्रसिद्ध है।
  1. उज्जैन : यहाँ कंठेश्वर महादेव मंदिर के पास महाकुंभ होता है, और यह स्थान शिव भगवान से संबंधित है। उज्जैन में होने वाले कुंभ मेला में भी लाखों भक्त आते हैं।
  1. नासिक : यहाँ गोदावरी नदी के तट पर महाकुंभ होता है, और इस स्थान का भी हिन्दू धर्म में गहरा महत्व है।

  महाकुंभ के आयोजन की प्रक्रिया

महाकुंभ का आयोजन बहुत ही विशाल और भव्य तरीके से होता है, जिसमें लाखों की संख्या में भक्त और साधु-संत भाग लेते हैं। यह मेला 4-6 सप्ताह तक चलता है, और इसमें विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ, साधु संतों का दर्शन, एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।

–   नदी में स्नान  : महाकुंभ में स्नान करने के लिए विशेष रूप से शुभ तिथियाँ निर्धारित की जाती हैं, जिन्हें “महा स्नान” कहा जाता है। इन तिथियों पर लाखों लोग पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए एकत्रित होते हैं।

–   साधु संतों की रैली  : महाकुंभ में विभिन्न संप्रदायों के साधु-संत और अखाड़े भाग लेते हैं। इन साधु-संतों के विभिन्न झुंड नदी में स्नान करने के लिए निकलते हैं, और उनका मार्गदर्शन विशेष धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होता है।

–   धार्मिक अनुष्ठान  : पूरे मेले के दौरान विभिन्न पूजा, यज्ञ, हवन, भजन-कीर्तन आदि आयोजित किए जाते हैं। भक्तों द्वारा भगवान शिव, विष्णु, गंगा माता और अन्य देवताओं के प्रति श्रद्धा व्यक्त की जाती है।

  महाकुंभ का सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव

महाकुंभ न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और समाज के लिए भी एक बड़ा सांस्कृतिक उत्सव है। इस आयोजन में देशभर से लोग एकत्रित होते हैं, और यह भारतीय समाज में विविधता को एक साथ लाने का अवसर प्रदान करता है। इसके माध्यम से भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करने का अवसर मिलता है, जैसे कि संगीत, कला, साहित्य और भोजन।

  सुरक्षा और व्यवस्थाएँ

महाकुंभ में लाखों लोगों की भीड़ एकत्र होती है, जिससे सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बनता है। इसलिए सरकार और स्थानीय प्रशासन द्वारा सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाते हैं, जिसमें पुलिस बल, स्वास्थ्य सुविधाएँ, बुनियादी ढाँचे की व्यवस्थाएँ और यातायात नियंत्रण शामिल होता है। कुंभ मेला के आयोजन के दौरान यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई अप्रिय घटना न हो, और श्रद्धालुओं को सुरक्षित और आरामदायक अनुभव मिले।

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